Our organisation name is Vishalakshi Shaktipeeth(Trust). We work for the service of orphans, helpless, disabled, training, medical, old and poor people.
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Supporting Orphans: Providing care, education, shelter, and emotional support to orphaned children who lack parental care.
Aiding the Helpless: Assisting individuals who are marginalized, vulnerable, or facing various challenges by providing them with resources and support.
Empowering the Disabled: Offering support, resources, and opportunities for individuals with disabilities to lead fulfilling lives, access education, employment, and healthcare.
Training Programs: Creating educational and skill-building programs to equip people with the tools they need to improve their lives and livelihoods.
काशी नगरी ऐतिहासिक,साहित्यिक ,धार्मिक धाराओं की त्रिवेणी है। ब्रम्ह वैवृत्य पुराण में आया है- काशी काशीति काशीति बहुधा संस्मरन् द्विजः । न पश्यतीह नरकान् वर्तमानान्चयं कृतान् ।। आदि शंकराचार्य ने काशी की महत्ता में लिखा है- 'त्रयमेव सारम् । विश्वेश लिगं मणिकर्णिकाम्बु काशी पुरी सत्यमिदम् त्रिसत्यम्' । भगवान बुद्ध ने अपना धर्मचक्र प्रवर्तन काशी के समीप सारनाथ में किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म काशी में ही हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ प्रथम बार सन् 1869 में काशी में ही हुआ था। काशी कबीर की जन्मभूमि / कर्मभूमि, रैदास की जन्मभूमि, तुलसी की कर्मभूमि रही है। काशी में सबसे पुराना देवी से संबंधित त्रिपुर भैरवी (महाश्मशान मणिकर्णिका) के निकट होने से शाक्तसाधना का केन्द्र रहा है। काशी जहाँ भगवान शिव स्वयं- 'दुर्गेति तारकं’ ब्रम्ह स्वयं कर्णे प्रयच्छति' मंत्र का सतत दान जीव को करते हुए मुक्ति प्रदान करते हैं। रामचरित मानस में बाबा तुलसी ने लिखा है कि- मुक्ति जन्म महि जानि ज्ञान खान अघ हानि कर । जहें बस शम्भु भवानि, सो काशी सेइय कस न ।। काशी जो मुक्ति प्रदान करती है, जो ज्ञान की खान है, जो पापों का नाश करती है, जो अद्भुत एवं अलौकिक है, ऐसी काशी में मुझे भी प्रवास का अवसर प्राप्त हुआ कि काशी प्रवास के दौरान बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूजन का सौभाग्य विगत तीन दशक पूर्व प्राप्त हुआ। उनकी अनुकम्पा से उनके चरणों में प्रीति बढ़ती गयी और नित्य सानिध्य का अनुभव प्राप्त होने लगा । समय बीतता गया । एक बार बाबा का जलाभिषेक करके विश्वनाथ जी की गलियों से गुजरते हुए वापस आ रहा था कि अचानक मन संकल्प विकल्प के हिलोरे लेने लगा । इस जगत में हम आए क्यों हैं ?प्रयोजन क्या है ? जाना कहाँ है? मन हृदय की गहराइयों में डूबा
गीता में आया है - यज्ञार्थी कर्मणो ऽन्यत्र | लोकोऽय कर्म बनान ।। शतपथ ब्राहम्ण में आया है- ‘यज्ञों वै विष्णु: । ‘ गृहस्थ जीवन यज्ञ है। रामवनवास सीता वनवास यज्ञ है। कृष्ण का अवतार यश है। कृष्ण कथा यज्ञ है। कृष्ण लीला यज्ञ है। कृष्ण कीर्तन यज्ञ है। भूदान यज्ञ है। सत्य अहिंसा यज्ञ है । ब्रम्हचर्य पालन, परोपकार, धमार्थ बलिदान, प्रार्थना समाज सेवा यज्ञ है। माता पिता की सेवा यज्ञ है। नर सेवा समाजसेवा एवं राष्ट्र सेवा यज्ञ है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है- ।। यज्ञाद भवति पर्जन्यः || यज्ञ जनता के कल्याण के लिए किया जाता है । ऋग्वेद में आया है कि प्राचीन काल में सुधन्वा के तीनों पुत्र यज्ञ द्वारा मनुष्य से देवता बन गये और मरुदगण जो पहले मनुष्य थे भी यज्ञ रूपी पुण्य के द्वारा देवता बन गये। यज्ञ कामधेनु है। पृथ्वी को यज्ञ कुण्ड कहा गया है। जिस प्रकार पृथ्वी का यज्ञ नित्य निरंतर चलता रहता है, उसी प्रकार देवताओं का यज्ञ नित्य निरंतर चलता रहता है। जिस प्रकार सूर्य देव हमें प्रकाश देते हैं । चन्द्रमा शीतलता देते है । उसी प्रकार हमें भी प्रतिदान करना चाहिए । शतपथ ब्राम्हण में कहा गया है। किं-पुरुष ही यज्ञ है क्योंकि पुरुष ही यज्ञ को करता है । भूदान, गृहदान, देहदान, नेत्रदान, रक्तदान, विद्यादान, वाणीदान, अभयदान, मानदान, विचारदान, धनदान, सम्पत्तिदान आदि सभी यज्ञ कहे गये हैं। दरिद्र नारायण की सेवा यज्ञ है। शास्त्रों में नारायण शब्द की विशेष महिमा है । संक्षेप में पुरुष का जीवन ही एक यज्ञ है।
गीता में कहा गया है कि 'यज्ञों दान तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्' भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा- 'भोक्तारं यज्ञ तपसाम् । शक्ति के आधार से जगत है। जैस भक्ति के बिना भगवान नहीं । वैसे शक्ति के बिना सेवा नहीं । जैसे प्राण बिना शरीर नहीं । वैसे शक्ति के बिना भक्ति नहीं । जैसे जल बिना नदी नहीं । वैसे शक्ति के बिना साहचर्य नहीं । जैसे नाविक के बिना नाव नहीं । वैसे शक्ति के बिना मानव नहीं । जैसे जल बिना जीवन नहीं । वैसे शक्ति बिना जगत नहीं । स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु आदि से भरा हुआ यह संसार भगवान का ही स्वरूप है। स्वयं भगवान ही इस संसार के रूप में प्रकट है। ऐसा मानकर सम्पूर्ण प्राणियों की सेवा करना, शरीर एवं इन्द्रियों के द्वारा भगवान की सेवा करना है। यह भगवान की बहुत उच्च कोटि की सेवा है । उपनिषद् में आया है :- ‘कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा' प्रत्येक जीव दूसरे जीव की सेवा करने में निरन्तर लगा हुआ है। मूलतः जीव- का स्वभाव एक दूसरे की सेवा करना है। एक जीव दूसरे जीव की सेवा कई रूपों में करता है। ऐसा करके जीव जीवन का आनन्द भोगता है। सेवक स्वामी की. माता पुत्र की पत्नी पति की एक मित्र दूसरे मित्र की सेवा करता है। राजनेता जनता की दुकानदार ग्राहक की, डॉक्टर मरीज की, भक्त भगवान की सेवा में लगा रहता है। यदि हम इसी भावना से खोज करते चले तो पायेंगे कि मानव समाज में ऐसा एक भी अपवाद नहीं है जिसमें कोई जीव सेवा की गतिविधि में न लगा हो। सेवा जीव की चिर संगिनी है और सेवा करना जीव का सनातन धर्म है। इसका न आदि है न अन्त । यह विश्व के समस्त लोगों का ही नहीं अपितु ब्रम्हाण्ड के इतनी भयंकर वेदना हुई कि मैं अपनी सुध-बुध खो बैठा। कुछ क्षण पश्चात अपने को एक संत के समीप पाया । महात्मा ने कहा कि 'आप शक्ति की उपासना करें" सब ठीक हो जायेगा । मुझे अनुभव हुआ कि बाबा ने ही संत रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद दिया । मैं संत को दण्डवत् करता कि इसी बीच वे अदृश्य हो गये ।
मैने जगत जननी पराम्बा आदिशक्ति सनातनी भगवती दुर्गा की उपासना प्रारम्भ की। साधना के कम में तल्लीनता बढ़ती गयी परमात्मा की कृपा से स्थान परिवर्तन हुआ । हरिद्वार पहुँचा । लगभग आठ वर्षों के प्रवास के दौरान जहाँ एक और माता की उपासना होती रही वहीं दूसरी ओर गंगा मैया की गोद में आप्लावित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साधना का क्रम काल की गति के साथ चलता रहा भगवती पराशक्ति और गति ब्रहम तथा नाद ब्रहम रूपी माँ भागीरथी की ममता प्यार एवं स्नेह का कृपा पात्र बनता गया । इक्कीस वर्ष की नियमित साधना के पश्चात माता की स्वप्न में झाँकी प्राप्त हुयी । माँ के दिव्य प्रकाश से हृदय आहलादित हुआ । माता का आदेश प्राप्त हुआ कि प्राप्त शक्ति का प्रयोग जगत के कल्याण के लिए करो । अचानक नीद खुली तो सन्नाटा पाया । मैं भौचक्का रहा गया । माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर उनके आदेशानुसार मैने 'मनुष्य यज्ञ' प्रारम्भ कर दिया। शास्त्र में आया है - धन्यं शरीरं खलु तस्य देहिनो । यस्य व्ययः स्यात्पर सौख्य हेतवे ।। भगवान कृष्ण ने 'जीवन यज्ञ' की शिक्षा दी है- 'जीवन के किसी भी व्यवहार में कही आशक्त न होना ।' कालिकापुराण में लिखा है 'सर्वं यज्ञमयं जगत्' समस्त जीवों का धर्म है। यह कार्य तभी समय हो पायेगा जब हम राग-द्वेष से रहित हो, स्वार्थ रहित हो, अहंकार रहित हो तथा आसक्ति से रहित हो । आइये हम सभी महाकाली की किया शक्ति, महालक्ष्मी की द्रण्यशक्ति और महा सरस्वती की ज्ञान शक्ति के साथ इस शक्ति पीठ से जुड़कर जीवन यज्ञ में सम्मिलित होकर 'सेवा हि परमोधर्म की उक्ति को चरितार्थ करें और पुण्य के भागी बने । 'त्वं नो मेघे प्रथमा' 'सदबुद्धि ही संसार में सर्वश्रेष्ठ है ।‘ - (ऋग्वेद) (स्वामी अखंडानन्द जी महाराज)
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Assessment and Identification: Conduct thorough assessments to identify the needs of each group - orphans, helpless, disabled, elderly, and impoverished individuals. This involves understanding their specific challenges, strengths, and requirements.
Program Development: Orphans and Helpless: Establish programs for shelter, education, and emotional support. Foster a nurturing environment that promotes growth and development. Disabled Individuals: Offer specialized training, accessibility solutions, and vocational programs tailored to their abilities.
Training: Develop skill-based training programs for both the youth and adults to enhance employability and self-sustainability. Medical Assistance: Provide access to healthcare services, including regular check-ups, treatments, and awareness programs.
Elderly Care: Design programs that cater to the physical, emotional, and social needs of the elderly, including healthcare support and companionship. Support for the Poor: Implement initiatives such as food distribution, vocational training, microfinance, or community development projects aimed at uplifting impoverished communities. Collaboration and Networking: Forge partnerships with local governments, healthcare providers, educational institutions, and businesses to broaden resources, expertise, and reach.
Fundraising and Resource Mobilization: Plan and execute fundraising campaigns, seek grants, and develop sustainable revenue streams to ensure the continuity and expansion of services.
Advocacy and Awareness: Raise awareness about the issues faced by these groups, advocate for their rights, and promote societal inclusivity through educational campaigns and community engagement.
Monitoring and Evaluation: Regularly assess the impact of programs through quantitative and qualitative measures. Use this data to refine existing programs and develop new strategies.
Volunteer and Staff Development: Recruit and train volunteers and staff who are passionate about the cause and equip them with the necessary skills and knowledge.
NGOs in serving orphans, the helpless, disabled individuals, providing training, medical aid, and assistance to the elderly and impoverished:
During the 2025 Mahakumbh in Prayagraj, NGOs played crucial roles, promoting sustainability with eco-friendly initiatives, providing medical care, and ensuring cleanliness. Their efforts transformed the event into a model of responsibility and real change, making the spiritual gathering seamless and meaningful for millions of pilgrims.
We are actively involved in projects catering to the needs of various marginalized groups such as orphans, the disabled, the elderly, and the economically disadvantaged.
Introducing the incredible team members dedicated to serving the needs of the community-